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ना किसी नेता के भक्त बनों, ना किसी पार्टी के भक्त बनों ..... | chunav shayri | | politics status |

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आप भी सुनिए नेता जी क्या-क्या कह रहे हैं, तरक्की के ज़माने में भी दर्द गरीब ही सह रहे हैं |

आप भी सुनिए नेता जी क्या-क्या कह रहे हैं,

एक वोट से क्या होता है कह कह यह साथी रोता है हर मत का मतलब समझाएं चलो वोट डालकर आएं

एक वोट से क्या होता है कह कह यह साथी रोता है

ना किसी नेता के भक्त बनों, ना किसी पार्टी के भक्त बनों दोस्तों सिर्फ़ देश भक्त बनों |

ना किसी नेता के भक्त बनों, ना किसी पार्टी के भक्त बनों दोस्तों सिर्फ़ देश भक्त बनों |

मुझे मजबूरियों ने चलाया है यहाँ तक मुझे देखें हवाएँ ले चलें अब कहाँ तक |

मुझे मजबूरियों ने चलाया है यहाँ तक मुझे देखें हवाएँ

अपना ज़माना आप बनाते हैं। अहल-ए-दिल हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया |

अपना ज़माना आप बनाते हैं।

जिन्दा रहे चाहे जान जाएँ, वोट उसी को दो जो काम आएँ |

जिन्दा रहे चाहे जान जाएँ, वोट उसी को दो जो काम आएँ |

मिली जो मंजिल तो कारवां भी बड़ा लग रहा था, वरना सफ़र में हर शख्स मुझे ठग रहा था, यूँ ही नहीं पहुंचा हूँ आज मैं इस मुकाम पर जब सो रहा था ये 'जग' तब मैं 'जग' रहा था।

मिली जो मंजिल तो कारवां भी बड़ा लग रहा था,

निकले अपने घर आंगन से द्वार द्वारअपने पडोसी को आवाज लगाएं चलो वोट डालकर आएं |

निकले अपने घर आंगन से द्वार द्वारअपने पडोसी को आवाज लगाएं

रिवाज़ न हो भले ही पढी किताबें पढने का जिंदगी के सीखे सबक रोज़ याद करने होते है |

रिवाज़ न हो भले ही पढी किताबें पढने का जिंदगी

जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल |

जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल |

तारों में अकेला चाँद जगमगाता है। मुश्किलों में अकेला इंसान डगमगाता है। काटों से घबराना मत मेरे दोस्त क्योंकि काटों में ही अकेला गुलाब मुस्कुराता है |

तारों में अकेला चाँद जगमगाता है।

हुई शाम तो चाँद -सितारों को पहरेदार किया उतर के पानी में दरिया को खुद ही पार किया |

हुई शाम तो चाँद -सितारों को पहरेदार किया

किसी पेड़ के कटने का किस्सा न होता, अगर कुल्हाड़ी के पीछे लकड़ी का हिस्सा न होगा |

किसी पेड़ के कटने का किस्सा न होता,

न किसी हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा |
न किसी हम-सफ़र न किसी हम-नशीं

सूरज की तपिश और बेमौसम बरसात को हमने हंस कर झेला है, मुसीबतों से भरे दलदल में हमने अपनी जिंदगी को धंस कर ठेला है, यूँ ही नहीं कदम चूम रही है। सफलता आज इस खुले आसमान तले ज़माने भर के नामों को पीछे छोड़ा है तब जाकर हमारा नाम फैला है।

सूरज की तपिश और बेमौसम बरसात को हमने हंस कर झेला है,



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