राजनीतिक संघर्ष शायरी | राजनीतिक नेतृत्व शायरी | राजनीति शायरी हिंदी |
राजनीति में हर कोई होशियार हैं,
हर नेता लोकहित करने को तैयार हैं.
पकड़ा न जाऊं इसका ख़ास ध्यान रखते हैं,
सम्मान से भरे, पर साधारण दिखने का प्रयास करते हैं.
निरंतर सेवा रहे हैं लोगों की ख़ातिर,
सामरिक चुप्पी के नीचे लुप्त हो जाता है अँधेरा.
हल्दीघाटी का युद्ध याद अकबर को जब आ जाता था,
कहते हैं अकबर महलों में सोते-सोते जग जाता था.
हमने दुनिया में मुहब्बत का असर जिंदा किया हैं,
हमनें नफ़रत को गले मिल-मिल के शर्मिंदा किया हैं.
राजनीति में लोगों को अब बड़ा सोचना चाहिए,
जाति-पाति से ऊपर उठकर ईमानदार नेता चुनना चाहिए.
दुआ करों मैं कोई रास्ता निकाल सकूँ,
तुम्हें भी देख सकूँ, ख़ुद को भी संभाल सकूँ…
क्या भरोसा करें आज-कल के नेताओं पर
ये तो अब जनता को भरोसाने लगे हैं,
नेता इतने रंग बदलते हैं
कि गिरगिट भी शर्माने लगे हैं.
कि जब इन नफ़रतों में ख़ुद तुम्हारा दम लगे घुटने,
तो आ जाना हमारी महफ़िलों में ज़िंदगी जीने.
मत सोचना मेरी जान से जुदा हैं तू,
हक़ीक़त में मेरे दिल का ख़ुदा हैं तू.
लड़ें, झगड़ें, भिड़ें, काटें, कटें, शमशीर हो जाएँ,
बटें, बांटें, चुभे इक दूसरे को, तीर हो जाएँ,
मुसलसल कत्ल-ओ-गारत की नई तस्वीर हो जाएँ,
राजनीति चाहती हैं हम और तुम कश्मीर हो जाएँ.
ये जो हालत हैं ये सब तो सुधर जायेंगे,
पर कई लोग निगाहों से उतर जायेंगे…
ख़्वाब टूटे हैं मगर हौसले अभी ज़िंदा हैं
मैं वो शख़्स हूँ जिससे मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं !!
हाँ देख ज़रा क्या तेरे क़दमों के तले है,
ठोकर भी वो खाए हैं, जो इतरा के चले हैं.
लगता था ज़िंदगी को बदलने में वक़्त लगेगा. . .
पर क्या पता था बदलता हुआ वक़्त ज़िंदगी बदल देगा.
खूब करो साहिब, कोशिश हमें मिट्टी में दबाने की,
शायद आपको नहीं मालूम, कि 'हम बीज हैं'
आदत है हमारी बार-बार उग जाने की..
गीता हूँ मैं, कुरआन हूँ मैं,
मुझको पढ़ इंसान हूँ मैं.