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समाज के लिए अच्छा संदेश | समाज पर कटाक्ष | समाज के लिए सुविचार | समाज सुधार विचार | सामाजिक शायरी | समाज में बदलाव क्यों नहीं आता |

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अगर आप इन अफ़सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते, तो इसका मतलब है कि ज़माना ही नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है |

बेईमान नेता किसी तवायफ़ से कम नही हैं, इनको बस वोट चाहिए इनको किसी की फ़िक्र नहीं हैं

शर्म करो हिन्दू बनते हो नस्लें तुम पर थूंकेंगी | बंटे हुए हो जाति पंथ में ये ज्वालायें फूकेंगी|

दुआ, प्रार्थना, भक्ति, पूजा सबस बेकार है, अगर तुम्हारे जहन में आज भी भ्रष्टाचार है |

सुनते वहीं है जिसमें उनकी अपनी भलाई हो, कहते वहीं है जिसमें उनकी अपनी कमाई हो |

पुलिस छोड़ रही है अपराधी को लेकर पैसा, जनता को चौकीदार लग रहा है डाकू जैसा।

भ्रष्टाचार से सब बर्बाद है, क्या देश सच में आजाद है |

ऐसा सब सोचते थे कि एक दिन शिक्षित समाज भ्रष्टाचार को हटायेगा, पर शिक्षित समाज सोचता है कि ज्यादा भ्रष्टाचार बढ़ेगा तो सब में ज्यादा-ज्यादा बटेगा |

नेताओं की जो ये अकड़ है, भ्रष्टाचार की वही जड़ है |

यहाँ तहजीब बिकती हैं यहाँ फरमान बिकते है, जरा तुम दाम तो बोलो यहाँ ईमान बिकते हैं |

किसी की नकल न करो | बल्कि खुद पे भरोसा करो | और खुद को सफल करो |

अपने खिलाफ बातों को खामोशी से सुनो | और जवाब देने का जिम्मा वक्त पर छोड़ दो |

चेहरे को नहीं अपने व्यक्तित्व और व्यवहार को खूबसूरत बनाओ| बिना डरे और बिना रुके बस आगे बढ़ते जाओ।

खुद को इतना मजबूत बनाओ| कि जिन्दगी के हर तूफान से लड़ जाओ।

जो जीवनभर सीखने की इच्छा रखता है | वही जीवन में आगे जाने की क्षमता रखता है।

जिसकी सोच बड़ी होती है | उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली होता है।

कुछ इस तरह जीवन को सफल बनाओ | कि हर कार्य को करने के लिए सक्षम हो जाओ।

मुश्किलों में भी जो मुस्कुराते हैं| वही जीत हासिल कर पाते हैं।

जरूरी नहीं कि हर किसी की नजरों में अच्छे रहो, जरूरत तो यह है कि हमेशा व्यक्तित्व से सच्चे बनो।

जंगल जंगल ढूंढ रही है मृग अपनी कस्तूरी को| कितना मुश्किल है तय करना ख़ुद से ख़ुद की दूरी को|

समाज के लिए अच्छा संदेश
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समाज पर कटाक्ष
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समाज के लिए सुविचार
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समाज में बदलाव क्यों नहीं आता
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सामाजिक शायरी
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